घीयर बनाने का यह सिलसिला होली के एक सप्ताह तक जारी रहता है। इस दौरान दोस्तों रिश्तेदारों के घर शुभकामनाओं के साथ घीयर लेकर जाया जाता है। सिंधी समाज में घीयर का विशेष महत्व है। इसे एक तरह से बाबुल के प्यार का प्रतीक माना जाता है। यानि पिता बेटी के घर शुभकामनाएं देने के लिए विशेष रूप से घीयर लेकर जाता है। सिंधी समाज में बहन और बेटियों का मुंह मीठा करवाने के लिए इस मिठाई का उपयोग किया जाता है। साथ ही होलिका दहन में भी इस मिठाई का उपयोग होता है।
अकेले भोपाल में ही 120 क्विंटल घीयर की खपत :
वैसे तो घीयर आपको साल भर मिल जाएंगे, लेकिन होली के पर्व पर इसकी डिमांड सबसे अधिक होती है। होली का पारंपरिक पकवान होने के कारण अकेले भोपाल में होली पर हर साल 120 क्विंटल तक घीयर की बिक्री होती है। पूजन की थाली में भी यह पकवान अनिवार्य होता है। भोपाल में लगभग 30 हजार सिंधी परिवार हैं। अनुमान है कि होली से रंगपंचमी तक हर परिवार घीयर का स्वाद जरूर चखता होगा।
सांचे में बनाई जाती है यह मिठाई :
जलेबी की तरह दिखने वाली इस मिठाई का इतिहास भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत से जुड़ा है। सिंधी मिठाइयां बनाने वाले रमेश चंचल की मानें तो होली से लगभग 15 दिन पहले घीयर बनाने का काम शुरू हो जाता है और इसके लिए हमेशा विशेष कारीगर रखे जाते हैं। होली के सीजन में लगभग 15 क्विंटल तक घीयर की बिक्री केवल हमारी ही दुकान से हो जाती है। शहर में कई अन्य जगहों पर भी अलग अलग वैरायटी के घीयर उपलब्ध हैं।
वहीं घीयर का आकार और रंग अन्य जलेबियों से पूरी तरह अलग होता है। इसका रंग इमरती से बिल्कुल अलग और आकार बड़ा होता है। इसे बनाने के लिए विशेष तरह के सांचों का उपयोग किया जाता है।