इस दौरान दोनों ही लोग रविन्द्र भवन स्थित अप्सरा रेस्टोरेंट में पत्रकारों से मुखातिब हुए और बक्सवाहा के विषय में कई विषयों पर चर्चा कीं। इस दौरान आनंद पटेल, पर्यावरण मित्र सुनील दुबे, डॉ. राजीव जैन, भूपेंद्र सिंह, करुणा रघुवंशी और पुरुषोत्तम तिवारी भी मौजूद थे।
जंगल के भरोसे है यहां के परिवारों का जीवन :
डॉ. धर्मेन्द्र कुमार ने बताया कि बक्सवाहा में राजेश यादव के सहयोग से उन्होंने हीरा खनन स्थान और शैलचित्र स्थान का भ्रमण किया। इस दौरान वहां के स्थानीय नागरिकों से भी बातचीत की। जिससे उन्हें जानकारी मिली कि उनकी जीविका, शिक्षण उसी जंगल पर निर्भर है, जिसे भविष्य में काटे जाने पर विचार हुआ है।
स्थानीय नागरिकों की मानें तो जंगल के सहयोग से महुआ, बीज, पत्तल, तेंदु पत्ता का संग्रह कर सालभर का खर्च निकल जाता है। डॉ. कुमार बताते हैं कि बक्सवाहा के जंगल का रास्ता बहुत कठिन है। फिर भी यहां के रहवासियों का कहना है कि जंगल का संरक्षण होना चाहिए। यहां के परिवारों का जीवन जंगल के भरोसे ही चलता है।
पर्यावरण अगस्त क्रांति 7 अगस्त से :
इस क्रांति में मप्र, बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, पंजाब, उड़ीसा, छतीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल से 170 से अधिक संस्थाएं बक्सवाहा पहुंचेंगी। इन सभी संस्थाओं के द्वारा पोस्टकार्ड अभियान, जंगल बचाओ अभियान के साथ विभिन्न जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे। साथ ही आम लोगों के साथ विमर्श का आयोजन भी किया जाएगा।
जल विहीन हो जाएगा बुंदेलखंड :
इस दौरान आनंद पटेल ने बताया कि केन बेतवा परियोजना में भी 23 लाख वृक्षों को काटा जाना है, जो और गम्भीर विषय है। इस परियोजना के बाद तो पूरा बुंदेलखंड ही जल विहीन बन जाएगा।
इंसान, पशु-पक्षी, जीव, जंतु इत्यादि ऑक्सीजन और पानी के बिना पल भर भी जीवित नहीं रह सकते। सरकार, व्यवस्था और कम्पनी तीनों को संयुक्त रूप से जंगलों के संरक्षण पर पुनर्विचार करना चाहिए।